एक उत्कृष्ट मसाला एक्शन फिल्म में तीन मुख्य तत्व होते हैं – एक ठीक-ठाक प्लॉट, नवीनतम और क्रिएटिव एक्शन सीन्स, और एक हीरो जो मनोरंजन और ह्यूमर को मजबूती से संभालता है। मगर “बड़े मियां छोटे मियां” इन तीनों के बारे में कुछ नहीं प्रस्तुत कर पाती। स्क्रीनप्ले से लेकर डायलॉग्स तक की कमजोर राइटिंग, इस फिल्म को महंगे बजट के बावजूद एक बड़ा छेद साबित होता है।
एक्शन के नाम पर बोरिंग
जब भी लोग फिल्म देखने जाते हैं, तो उनके मन में एक सवाल होता है – क्या यह एंटरटेनिंग होगी? लेकिन एक्शन मसाला फिल्मों के मामले में, यह सवाल हल्का होता है और एक और सवाल प्राथमिकता प्राप्त करता है – “यह कितनी बुरी होगी?” लेकिन ‘बड़े मियां छोटे मियां’ का उत्तर भी बेहद कमजोर है। यह फिल्म एक्शन एंटरटेनमेंट की गरीबी रेखा से भी काफी नीचे छूटती है।
फिल्म शुरू होती है एक आर्मी कॉन्वॉय पर अटैक से, जिसमें एक मास्कधारी विलेन भारतीय सुरक्षा से जुड़ा, एक महत्वपूर्ण पैकेज कब्जा लेता है। यह पैकेज एक पासवर्ड है, जिससे ‘करण कवच’ कंट्रोल होता है, जो भारत को एक शील्ड के रूप में कवर करने वाला एंटी-मिसाइल सिस्टम है।
इस महत्वपूर्ण पैकेज को तीन दिनों में वापस लाने का काम दो आर्मी ऑफिसर्स को सौंपा जाता है – कैप्टन फिरोज उर्फ फ्रेडी (अक्षय) और कैप्टन राकेश (टाइगर) को। इस टास्क में इन दोनों के साथ है एक आर्मी ऑफिसर कम स्पेशल एजेंट मीशा (मानुषी छिल्लर) और एक एनालिस्ट (अलाया एफ)। सोनाक्षी सिन्हा भी फिल्म में एक महत्वपूर्ण रोल निभा रही हैं, लेकिन उनका रोल किसी हार्ड-हिट किरदार से ज्यादा नहीं है।
फिल्म की कहानी
देश की सुरक्षा में खतरा, एक आर्मी से जुड़ा विलेन, चीन-पाकिस्तान का खतरा, और हीरो जो रक्षा करते हैं। यह प्लॉटनुमा चिराग इतना घिसा जा चुका है कि अगर यहाँ सच का आज्ञापालक होता, तो वह भी निकल जाता। फिल्म के मेकर्स ने मॉडर्न-टेक और AI को मिलाकर नया अंदाज दिखाने की कोशिश की है, लेकिन यह काम नहीं करता है जब हीरो शाहरुख-सलमान नहीं हैं।
एक अच्छी मसाला एक्शन फिल्म में तीन मुख्य तत्व होते हैं – एक ठीक-ठाक प्लॉट, नवीनतम और क्रिएटिव एक्शन सीन्स, और एक हीरो जो मनोरंजन और ह्यूमर को मजबूती से संभालता है। मगर ‘बड़े मियां छोटे मियां’ इन तीनों को प्रस्तुत नहीं कर पाती। स्क्रीनप्ले से लेकर डायलॉग्स तक की कमजोर राइटिंग, इस फिल्म को महंगे बजट के बावजूद एक बड़ा छेद साबित होता है। अक्षय कुमार की कॉमेडी की जगह आपको कोई ऐसा पंच नहीं सुनने को मिलता जो थोड़ी देर के लिए दिमाग में ठहरकर हंसी दिला दे। टाइगर श्रॉफ का किरदार फिल्म में नॉन-सीरियस बातें करने वाला है, मगर उनसे भी ‘टेररिज्म में नेपोटिज्म’ जैसा पंच ही निकलता है।
एक्शन में 108 बार, धमाके के आगे टहलते हीरो हैं, जो सीट पर फाइट करते हैं, बाइक चलाते हैं, और गुंडों के साथ लड़ते हैं। कितनी ही हताशा की बात है कि टाइगर और अक्षय जैसे हीरोज, जो अपने शरीर को खतरे में डालकर एक्शन करते हैं, भी दर्शकों को सीटी निकलवा देने वाला एक एक्शन सीन नहीं कोरियोग्राफ कर पा रहे हैं। फिल्म का जो “धमाकेदार” ट्विस्ट है, वह पहली बार दर्शकों ने ‘शक्तिमान’ में देखा था। यह आपको फिल्म देखने पर समझ आ जाएगा, लेकिन इसे समझने के लिए फिल्म देखने का निर्णय अपने रिस्क पर लें। और गाने? छोड़ दें!
सम्पूर्ण संवाद में देखें तो ‘बड़े मियां छोटे मियां’ को ‘सबसे बड़े बजट में, सबसे बोरिंग फिल्म’ के किसी प्रतियोगिता में दावेदारी पेश करनी चाहिए। यह फिल्म किसी भी तरह से ‘एक्शन एंटरटेनर’ कहलाने के योग्य नहीं है।
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